लॉकडाउन में ऑनलाइन हुई 'सुनो सुनाओ' मासिक काव्य गोष्ठी
पूर्वी दिल्ली ! आई पी एक्सटेंशन स्थित आईपैक्स भवन में महासंघ के प्रधान सुरेश बिंदल के सानिन्ध्य में निर्बाध चल रही, नवांकुर और स्थापित कवियों की, "कवियों द्वारा, कवियों के लिए, कविता" मासिक काव्य गोष्ठी ‘सुनो सुनाओ’ गोष्ठी ने अपना 84 वाँ सफल आयोजन किया।
देश भर में चल रहे लॉकडाउन के कारण आईपैक्स भवन में होने वाली इस 'सुनो सुनाओ' काव्यगोष्ठी का क्रम न टूटे इसलिए गोष्ठी को इस बार कार्यक्रम के महामंत्री सुरेश बिंदल और संयोजक सुषमा सिंह ने ऑनलाइन करने का विचार किया। नियत समय सुबह 11.00 बजे न करके शाम 4.00 बजे रचनाकारों के अपने-अपने घरों से शुरू की गई।
ऑनलाइन होने के बावजूद गोष्ठी में कई वरिष्ठ कवियों, शायरों और गीतकारों के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों के जाने माने रचनाकारों ने भी हिस्सा लेकर इसे अंतर्राज्यीय बना दिया साथ ही अपनी अपनी रचनाएँ ऑनलाइन पढ़ कर गोष्ठी को जीवंत कर दिया।
इस बार की ऑनलाइन गोष्ठी में कविताएं, गज़ल, गीत, छंद, मुक्तक आदि 27 विधाओं के जानकार और आकाशवाणीे पूर्व निदेशक,साहित्यकार लक्ष्मी शंकर वाजपेयी और जानी मानी कवयित्री ममता किरण मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे।
आरंभ में सुनो सुनाओ की संयोजिका कवयित्री सुषमा सिंह और सुरेश बिंदल ने ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल हुए लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ममता किरण सहित तमाम सहभागी रचनाकारों का शाब्दिक अभिनंदन किया।
गोष्ठी में अनेक रचनाकार और भारी संख्या में श्रोता भी ऑनलाइन उपस्थित रहे।
'सुनो सुनाओ' ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी में अनिमेष शर्मा कहा -
" हमारे दिल के जख्मों से शरारत कौन करता है
हमारे दर्द से इतनी मुहब्बत कौन करता है
वही परछाइयाँ देखीं, वही आहट सुनी फिर से
हमारे प्यार की इतनी हिफाजत कौन करता है ? "
अनिल 'मासूम' और अश्वनी शर्मा ने संयुक्त रूप से कहा -
" ये कोरोना भी हम से बचेगा नहीं
छोड़ के आएंगे इस के अंजाम तक ! "
कृष्ण नरेड़ा ने कहा -
" मैंने तो जलाया था दीपक,
पर तुम न ओढ़ पायी चुनड़ी!
मैंने तो सजाया था ये पथ,
पर तुम्हीं नहीं आने पायी ! "
डॉ. टीएस दराल ने एक नई पैरोड़ी सुनाया -
" एक मित्र बोले भैया आजकल कहां दुमदबाके बैठे हो,
कोरोना के डर से काहे घर में मुंह छुपाकर बैठे हो ? "
सपन ने कुछ यूँ कविता पेश की -
" दिल ना टूटे तेरा, ना तू चाहे किसी की
बेवफाई भी' रही ! "
बंग्लुरू से डॉ. इंदु झुनझुनवाला ने अपनी कविता प्रस्तुत की -
" एक सन्नाटा,
पसरा है मन के भीतर,
बाहर शोर-ही-शोर | "
गोरखपुर से ऑनलाइन जुड़े आशु कवि तथा गीतकार राजेश राज ने गीत पेश किया -
" लाडो कुछ दिन की है बात,
मेरी तरह रोक ले तू भी,
आंखों से बरसात "
डॉ. देवेन्द्र प्रधान ने अपनी एक कविता -
" मां ! मैं ऐसी क्यों हूँ ? "
भागलपुर-बिहार से ऑनलाइन जुड़े वरिष्ठ पत्रकार, कवि और लघुकथाकार श्री पारस कुंज ने अपनी एक गजल पेश की -
" बहारे चमन पे गजल कह रहा हूँ
खिले हर सुमन पे गजल कह रहा हूँ !
किसी एक पर मैं नहीं कहता 'पारस'
मैं हर एक रतन पे गजल कह रहा हूँ ! "
गुरुग्राम-हरियाणा से ऑनलाइन इंदुराज निगम ने अपनी रचना पढ़ी -
" नाम तुम्हारा लिख जाता है
कुछ भी लिखते हैं
जब-जब तुमको देखूं
मुझको कान्हा दिखते हैं | "
बंग्लुरू-महाराष्ट्र से सनंद सारस्वत ने अपनी कविता सुनाई -
" ये चाहत तुम्हारी, ये अन्धी गली | "
संचालन करती हुई 'सुनो सुनाओ काव्य-गोष्ठी' की आयोजिका डॉ सुषमा सिंह ने मौसम पर अपना एक गीत प्रस्तुत किया -
" धीरे-धीरे गाना बादल, धीरे लेना अंगड़ाई | "
गुरुग्राम-हरियाणा के श्री राजेंद्र निगम ने रचना सुनाई -
" हमें रिश्ते निभाने का हुनर आना जरूरी है
लबों को मुस्कुराने का हुनर आना ज़रूरी है | "
आईपी एक्सटेंशन से श्री प्रशांत ने सुनाया -
" मुस्कुराने के दर्द की चर्चा हो
महफिलों में ये जरूरी तो नहीं ? "
गोष्ठी की विशिष्ट अतिथि ममता किरण ने अपनी गजल पढ़ी -
" वो दौर कि आईना वो रखते थे सदा साथ
ये दौर कि आईना गवारा नहीं करते | "
अंत में मुख्यअतिथि लक्ष्मी शंकर वाजपयी ने अपनी एक रचना सुनाई -
" सिमटा तो एक तंग से घेरे में रह गया
उड़ जाता तो आकाश की सीमा नहीं होती | "
और श्रोताओं की मांग पर कुछ माहिए भी सुनाए |
रचनाकारों के साथ-साथ ऑनलाइन 'सुनो सुनाओ' काव्य गोष्ठी में सुनने और रचनाकारों का उत्साह बढ़ाने के लिए -
'आईपैक्स भवन' के प्रधान सुरेश बिंदल, प्रमोद अग्रवाल, नानू राम, एससी दास रोहिला, कमल एवं श्रीमती राजरानी और श्रीमती कुसुम सहित कई श्रोताओं ने ऑनलाइन गोष्ठी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और इस 'ऑनलाइन काव्य गोष्ठी' का आनंद लिया |